मध्य प्रदेश की पत्रकारिता एक बार फिर विवादों के घेरे में है। राजस्थान पुलिस द्वारा मध्य प्रदेश के दो पत्रकारों - हरीश दिवेकर और आनंद पांडे - की कथित गिरफ्तारी ने न केवल मीडिया जगत को चौंकाया है, बल्कि पत्रकारिता की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर भी गंभीर बहस खड़ी कर दी है।
हालांकि घटना के संबंध में जांच जारी है, लेकिन पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न संगठनों और वरिष्ठ पत्रकारों ने इसे लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की अपील की है। उनका कहना है कि “पत्रकार को सच लिखने से कभी किसी ने नहीं रोका”, किंतु कुछ तत्व इस भ्रम को फैला रहे हैं कि सत्य के पक्ष में लिखने वालों पर अंकुश लगाया जा रहा है।
जंप ने मांगी स्पष्टता, कहा - तय हो कि यह पीत पत्रकारिता है या निष्पक्षता पर हमला
जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ मध्य प्रदेश (जंप) के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण सक्सेना ने राजस्थान सरकार से मांग की है कि वह इस पूरे मामले से जुड़े तथ्यों को सार्वजनिक करे। उन्होंने कहा,
-> “जरूरी है कि यह स्पष्ट किया जाए कि यह मामला पीत पत्रकारिता का परिणाम है या फिर यह निष्पक्ष पत्रकारिता पर किसी सरकार का हमला है। जब तक तथ्यों की पारदर्शिता सामने नहीं आती, तब तक किसी भी पक्ष को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा।”
वहीं, जंप के प्रदेश महासचिव महेंद्र शर्मा ने कहा कि मध्य प्रदेश में कभी भी किसी ईमानदार और सच्चे पत्रकार को खबर लिखने से नहीं रोका गया।
-> “देश में भी अब तक कोई ऐसी मिसाल नहीं रही जिसमें एक सच्चे और निष्पक्ष पत्रकार की कलम पर प्रतिबंध लगाया गया हो। पत्रकारों को खबरों के जरिए व्यवस्था की कमियां उजागर करनी चाहिए, न कि किसी के निजी जीवन या चरित्र को निशाना बनाना चाहिए,” शर्मा ने कहा।
व्यक्तिगत जीवन पर लेखन से बचने की सलाह
पत्रकारिता के सिद्धांतों के अनुसार, किसी भी व्यक्ति - चाहे वह राजनेता हो या आम नागरिक - के निजी जीवन और चरित्र पर लेखन करते समय पत्रकार को पक्षकार नहीं बनना चाहिए।
मीडिया जगत के वरिष्ठों का मानना है कि पत्रकार का धर्म सत्ता की गलतियों को उजागर करना है, लेकिन निजी जीवन की घटनाओं को बिना ठोस प्रमाण या सार्वजनिक हित के आधार पर प्रस्तुत करना पत्रकारिता की मर्यादा के विरुद्ध है।
