मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा इंदौर में "सिलसिला" के तहत नसीर अंसारी एवं इशरत वाहिद को समर्पित विमर्श एवं रचना पाठ आयोजित

 


मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा, इंदौर के द्वारा सिलसिला के तहत प्रख्यात शायरों नसीर अंसारी एवं इशरत वाहिद को समर्पित विमर्श एवं एवं रचना पाठ का आयोजन 22 जून , 2025 को शाम 4:00 बजे से दस्तक पब्लिक स्कूल, ग्रीन पार्क कॉलोनी, इंदौर में ज़िला समन्वयक तजदीद साक़ी के सहयोग से किया गया।

मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि नसीर अंसारी और इशरत वाहिद उर्दू साहित्य की वो मो'तबर आवाज़ें हैं जिन्होंने शेरी जमालियात, फ़िक्री पुख़्तगी और नई नस्ल की तरबियत में नुमायाँ किरदार अदा किया। इंदौर जैसे ज़र्ख़ेज़ शहर की साहित्यिक पहचान में इन दोनों शख़्सियात की साहित्यिक सेवाएं मील के पत्थर की हैसियत रखती हैं।



मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के साहित्यिक कार्यक्रम सिलसिला को इन दो बुज़ुर्ग शायरों के नाम समर्पित किया है ताकि उनकी साहित्यिक परम्परा को नई पीढ़ी तक रूपांतरित किया जा सके।

ये ख़िराजे अक़ीदत सिर्फ़ माज़ी की ख़िदमात का ऐतराफ़ नहीं, बल्कि मुस्तक़बिल की अदबी तामीर की एक संजीदा कोशिश भी है

इंदौर ज़िले के समन्वयक तजदीद साक़ी ने बताया कि सिलसिला के तहत शाम 4:00 बजे स्मरण एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता इंदौर के वरिष्ठ शायर अज़ीज़ अंसारी, मुख्य अतिथि के रूप में समाज सेवी शरीफ़ मंसूरी एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में शाजापुर के प्रसिद्ध शायर पंकज पलाश, मोईद पठान एवं वकील मंसूरी, राज़िक़ अंसारी एवं सग़ीर अंसारी आदि मंच पर उपस्थित रहे।इस सत्र के प्रारंभ में इंदौर के उस्ताद शायरों नसीर अंसारी एवं इशरत वाहिद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वरिष्ठ पत्रकार जावेद आलम ने प्रकाश डाल कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

जावेद आलम ने नसीर अंसारी के बारे में बताते हुए कहा मालवा के उस्ताद शायरों में नसीर अंसारी का महत्वपूर्ण स्थान है। उनका ग़ज़ल संग्रह "मताए सुख़न" 2013 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह पर लिखते हुए प्रो. अज़ीज़ इंदौरी ने उन्हें कम सुख़न और कम गो ठहराया है, यानी ऐसा रचनाकार जो शेर भी बहुत सोच समझ कर कहता है। उनकी शायरी में फ़िक्रो फ़न की ऊर्जा और शायस्तगी पाई जाती है। नसीर अंसारी की गिनती इंदौर के उस्ताद शायरों में होती थी। 

वहीं उन्होंने प्रसिद्ध शायर इशरत वाहिद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बात करते हुए कहा कि इशरत वाहिद की शोहरत एक बेबाक और ज़बानो बयान पर महारत रखने वाले ऐसे रचनाकार की है जिसने न सिर्फ़ विभिन्न विषयों पर लिखा बल्कि नए रचनाकारों का मार्गदर्शन भी किया। उनका ग़ज़ल संग्रह "अब्र का टुकड़ा" के नाम से प्रकाशित हुआ जिसका संकलन प्रख्यात शायर अहमद कमाल परवाज़ी ने किया था। वो न सिर्फ़ नए ख़यालात पेश करते हैं बल्कि उनका अंदाज़ भी अलग है। उनका ये अंदाज़ ग़ज़ल प्रेमियों को न केवल चौंकाता है बल्कि ग़ौरो फ़िक्र की दावत भी देता है। उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के ये अशआर पेश हैं

गुफ़्तगू किस क़दर नशीली है
जैसे लफ़्ज़ों ने नींद पी ली है
खोखली हैं तमाम बुनियादें
सिर्फ़ होंटों पे ख़ुद कफ़ीली है

लफ़्ज़ों का नींद पी लेना, होंटों की ख़ुद कफ़ीली उम्मीद का सी लेना ऐसे रूपक हैं जिन्हें उर्दू शायरी में इज़ाफ़ा कहा जा सकता है 

रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :  

अज़ीज़ अन्सारी
प्यार के गीत गाती सुहानी ग़ज़ल
बहते दरिया की जैसे रवानी ग़ज़ल
आज भी ताज़गी से ये भरपूर है
कौन कहता है इसको पुरानी ग़ज़ल

रईस अनवर
हमारे जैसा फ़रेब तुमने किसी से खाया तो क्या करोगे
तुम्हारे जैसा सबक़ किसी ने तुम्हें सिखाया तो क्या करोगे

ज़हीर राज़
मिरे बेटे मिरे नव्वाब छोटे 
कभी मत देखना तो ख़्वाब छोटे 

हनीफ़ दानिश
चराग़ों  पर सितम इतना तो आइंदा भी रहना है 
हवा की ज़द पे भी रहना है  ताबिंदा भी रहना है 

पंकज पलाश 
लोग इसको बदन समझते हैं 
ये मिरी रूह पे जो छाला है 

मुश्ताक़ अंसारी
सदा मायूस लोटा है जहाँ से
वही दामन बिछाना चाहता है

नवाब हनफ़ी
मिरी हयात के जाने के बाद आई है
क़ज़ा भी कितना मनाने के बाद आई है

इमरान यूसुफज़ई 
दो दिलों के बीच में हैं तल्खियां बैठी हुईं।
उठ के अब चलती नहीं हैं हिचकियां बैठी हुईं।


शरीफ़ कैफ़
घरों में जिनके अंधेरों का बोलबाला है।
वो रौशनी का बड़ा एहतराम करते हैं।।

धीरज सिंह चौहान
पहले तरतीब से रख देते हैं मिट्टी पे बदन
फिर वहाँ जाके हमीं ख़ाक पलट आते हैं

सचिन राव विराट
फ़र्ज़ से मजबूर होकर, आरज़ू की क़ब्र पर
ज़िम्मेदारी ले रही थी नौकरी का फ़ैसला 
सचिन राव विराट

धनन्जय कौसर पण्डित
जल रहा हूं बुझ रहा हूं ख़ुद ब ख़ुद 
आग सीने में है पानी आँख में ।

आदित्य ज़रखेज़
अगर तुम पर जुनूँ तारी नहीं है
तुम्हारा इश्क़ मेयारी नहीं है

शाहनवाज़ अरमान
मैं बस परों की बदौलत यहाँ नहीं  पहुँचा 
तिरा करम भी तो शामिल मिरी उड़ान मे था 

मंथन पालीवाल
क़ैद कर लो मिरी आवाज़ का साया ख़ुद में
लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ सुनो मुझको, मा'नी छोड़ो 

बद्र मुनीर
हम उनसे मोहब्बत करते हैं अब उनको बताने जाएंगे
वो ख़ुद ही समझ लें हाल-ए-दिल, इसमें तो ज़माने जाएंगे

आबिद हद्दाद
ऐ ज़िन्दगी ये कैसा तमाशा है हर तरफ़
धोखा, फ़रेब झूट ग्वारा है हर तरफ़

कार्यक्रम का संचालन धनंजय कौसर पंडित द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक तजदीद साक़ी ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

Post a Comment

Previous Post Next Post